बिहार की राजनीति एक बार फिर बदलाव की दहलीज पर खड़ी है. 2025 के विधानसभा चुनाव को लेकर जहां सभी दल अपनी रणनीति तय कर रहे हैं, वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 225 सीटें जीतने का बड़ा लक्ष्य तय किया है. खासतौर से एक योजना ने सबका ध्यान खींचा है. 94 लाख गरीब परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने का संकल्प. यह सिर्फ एक घोषणा नहीं, बल्कि संभावित ‘गेम चेंजर’ है.
नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक!: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले नीतीश सरकार का बड़ा दांव चला है. 94 लाख गरीब परिवारों को 2 लाख रुपये मिलेंगे. 2024 में राज्य के जाति सर्वेक्षण में पाया गया कि बिहार में एक तिहाई परिवार प्रति माह 6000 रुपये से कम कमाते हैं. अब सरकार ने इन परिवारों को लक्ष्य करते हुए योजना शुरू की है जिसमें तीन किस्तों में पैसा दिया जाएगा.
बिहार चुनाव पर सियासत
किन्हें मिलेगा लाभ: इस योजना की अच्छी बात यह है कि यह सभी जाति या वर्ग के गरीब परिवारों के लिए है. आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण, पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित, महादलित और अल्पसंख्यकों को इस योजना की श्रेणी में रखा गया है. यह पैसा खुद का रोजगार शुरू करने के लिए मिलेगा. अच्छी बात यह है कि आर्थिक मदद को लौटाने की भी जरूरत नहीं होगी. यह भी जानकारी मिली है कि अगर जरूरत पड़ती है तो 2 लाख की आर्थिक मदद को बढ़ाया जा सकता है.
कौन होंगे पात्र?: इस योजना का लाभ उठाने के लिए जरूरी है कि आवेदक बिहार सरकार की पात्रता शर्तों को पूरा करते हुए गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आता हो. इसके अलावा बिहार की जातीय जनगणना 2023 की पात्रता सूची को भी आवेदक के द्वारा पूरा करना चाहिए. योजना के लिए दस्तावेजों की बात करें तो बिहार का आधार कार्ड, आय का प्रमाण, जाति प्रमाण पत्र जरूरी होगा.
में सुधार लाना चाहती है. यह राशि परिवारों को स्वरोजगार स्थापित करने, शिक्षा प्राप्त करने और स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने में मदद करेगी, जिससे वे गरीबी के चक्र से बाहर निकल सकें और सामाजिक-आर्थिक रूप से सशक्त बन सकें.
योजना को लाना चुनौती पूर्ण काम: अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास का मानना है कि बिहार जैसे राज्य के लिए योजना को लाना चुनौती पूर्ण काम है. सरकार के पास आर्थिक संसाधन काम है. लेकिन अगर सरकार इच्छा शक्ति दिखाएं और हर साल के लिए टारगेट तय करे तो योजना को मूर्त रूप दिया जा सकता है.
हर साल 36000 करोड़ रुपए का बोझ बढ़ेगा: डॉक्टर विद्यार्थी विकास का कहना है कि सरकार को योजना पर एक लाख 80000 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे. अगर इसे 5 साल में बांट दिया जाए तो सरकार के ऊपर हर साल 36000 करोड़ रुपए का बोझ बढ़ेगा. सरकार अगर हर एक इलाके के लिए क्लस्टर बनाएं और लघु सूक्ष्म उद्योग स्थापित किए जाएं और उन्हें बाजार उपलब्ध कराया जाए तो बिहार के लिये तरक्की के मार्ग भी खुल सकते हैं.
बिहार जातीय तस्वीर क्या कहती है?: राजनीतिक संकेत यह बताते हैं कि बिहार में जाति किस प्रकार से राजनीतिक परिदृश्य को आकार देती है. जातिगत समर्थन के आधार पर राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्र, उम्मीदवार चयन और गठबंधनों की रणनीति बनाते हैं, ये संकेत चुनावी परिणामों को सीधे प्रभावित करते हैं और बिहार की राजनीति की दिशा निर्धारित करते हैं.
लिए नजीर बनी. इसी कड़ी में बिहार एक और क्रांतिकारी कदम उठाने जा रहा है. लोगों को गरीबी से निकलने के लिए सरकार योजना लाने जा रही है और बिहार विधानसभा चुनाव से पहले योजना को मूर्त रूप देने की तैयारी है. आपको बता दें कि बिहार में 34.3% परिवार आज भी गरीबी रेखा से नीचे हैं.
94 लाख परिवारों को तोहफा: बिहार पहला राज्य बना था जिसने अपने यहां जातिगत जनगणना कराया. जातिगत जनगणना के रिपोर्ट पर सरकार ने लोगों को कार्यवाही का भरोसा दिलाया था. रिपोर्ट में 34.3 प्रतिशत परिवार ऐसे पाए गए थे जिनकी मासिक आय 6000 से कम थी. कुल मिलाकर 94 लाख परिवारों को सरकार ने चिह्नित किया था अब जबकि विधानसभा चुनाव करीब है तो ऐसे में सरकार 94 लाख परिवार के लिए योजना लाने जा रही है.
हर परिवार को दिए जाएंगे 200000: 94 लाख पिछड़ी अति पिछड़े और गरीब सवर्णो के बदौलत एनडीए 225 का लक्ष्य साधना चाहती है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 2025 के चुनाव में योजना के सहारे जिन्न निकालने की तैयारी में है. 94 लाख परिवार को 200000 रुपये देने की योजना को हरी झंडी मिल गई है. चुनाव से पहले योजना को लागू करने की तैयारी है.
अनुसूचित जाति में 43% लोग आज भी हैं गरीब: राज्य के अंदर अगर गरीबों की बात कर ले तो कुल मिलाकर 34.3% परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं. अनुसूचित जाति के अंतर्गत 42.93% अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत 42.70% अति पिछड़ा वर्ग में 33.50% पिछड़ी जाति में 33.6% और सामान्य वर्ग में 25.009% परिवार आज भी गरीबी रेखा से नीचे हैं. यह परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आय 6000 प्रति महीने से कम है.
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